सचिव के एम तिवारी ने स्कूलों के विलय के फैसले को अविलंब वापस लेने की मांग की
नई दिल्ली(नया भारत 24 ब्यूरो) सीपीआई (एम) दिल्ली ने एमसीडी के 60 एमसीडी स्कूलों को 30 स्कूलों में विलय करने के फैसले की निंदा की है और उसको स्कूली शिक्षा को निजी घरानों को सौंपने का जनविरोधी निर्णय बताया।
सीपीआई(एम) दिल्ली के सचिव के एम तिवारी ने कहा कि एमसीडी के 60 स्कूलों को 30 में मर्ज कर देने वाला एमसीडी का फैसला स्कूली शिक्षा को प्राईवेट प्लेयर्स के हवाले करने का जन विरोधी फैसला है। पिछले 10 सालों में दिल्ली की आबादी में जबरदस्त बढ़ोत्तरी को देखते हुए दिल्ली सरकार को कई नए स्कूल खोलने की ज़रूरत थी, लेकिन इसके विपरीत बुनियादी ढाँचे (कमरे, बैंच,डेस्क, आदि) के अभाव के बाद भी उसने 30 दूसरी पाली के स्कूलों को सवेरे की पाली में मर्ज कर दिया।
उन्होंने कहा कि इससे शिक्षा की गुणात्मकता पर सीधा असर पड़ेगा। एमसीडी के प्राथमिक स्कूलों में छात्र शिक्षक अनुपात 37 से 42 के बीच है, जो शिक्षा के अधिकार के तहत अनिवार्य 30 से कहीं ज़्यादा है। इस फैसले से यह अनुपात और भी बढ़ जाएगा। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि इसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति के को-एजुकेशन से जोड़ा जा रहा है। ध्यान रहे कि एमसीडी के स्कूलों में गरीब और मजदूर वर्ग के बच्चे पढ़ते हैं। इस फैसले का विपरीत असर इस वर्ग के बच्चों पर पड़ेगा और उनके ड्रॉप आउट की संख्या और भी ज्यादा बढ़ जाएगी।
उन्होंने कहा कि बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा सुलभ कराना नगर निगम के प्राथमिक कामों में आता है। स्कूली शिक्षा में क्रांतिकारी परिवर्तन का ढिंढोरा पीटने वाली आम आदमी पार्टी की सरकार की कथनी और करनी का अंतर इस फैसले में साफ देखा जा सकता है।
सीपीआई(एम) दिल्ली राज्य कमेटी आम आदमी पार्टी के नेतृत्व वाली एमसीडी के इस फैसले का पुरजोर तरीके से विरोध करती है और माँग करती है कि स्कूल मर्जर के इस जनविरोधी फैसले को वापस ले।