वामपंथी छात्र संगठनों के गठबंधन के तहत आइसा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष और एसएफआई सचिव और संयुक्त सचिव पद के लिए चुनाव लड़ेगा, संयुक्त चुनाव घोषणा पत्र जल्द जारी किया जाएगा।
नई दिल्ली(नया भारत 24 डेस्क)वामपंथी छात्र संगठनों ने आज दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) चुनाव के लिए गठबंधन की घोषणा की है जिससे डूसू चुनाव की दौड़ और भी दिलचस्प हो गई है। ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आइसा) और स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) के पदाधिकारियों ने आज राजधानी दिल्ली में संयुक्त प्रेस वार्ता कर इसकी जानकारी दी है।
इस दौरान दोनों दलों के छात्र नेताओं ने डूसू चुनाव की प्रक्रिया पर चर्चा की और दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों की समस्याओं को भी उठाया,इस अवसर पर आइसा दिल्ली के अध्यक्ष अभिज्ञान, आइसा राज्य सचिव नेहा, एसएफआई राज्य सचिव आइशी घोष और अन्य ने पत्रकारों को संबोधित किया और कहा कि डूसू की राजनीति में पैसे की ताकत हावी है, हर साल डूसू चुनाव प्रचार के लिए बड़े वाहनों का उपयोग किया जाता है लाखों रुपये के पर्चे उड़ाए जाते हैं, बड़ी-बड़ी रैलियां निकाली जाती हैं और राजनीति में करियर बनाने के लिए एबीवीपी और एनएसयूआई के कार्यकर्ता हिंसा करके कैंपस का माहौल खराब करते हैं और इस शोर-शराबे में छात्रों की समस्याएं खो जाती हैं।
एबीवीपी हर साल बड़े-बड़े वादों के साथ सत्ता में आती है और हर साल उन्हीं वादों को दोहराती है. उन्होंने कहा कि पिछले 10 सालों में एबीवीपी ने राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी-आरएसएस के हाथों सत्ता पर कब्ज़ा जमाया है और वह संघ के एजेंट के रूप में कार्य कर रही है।
वामपंथी नेताओं ने कहा कि एबीवीपी ने सार्वजनिक शिक्षा को खत्म करने और एनईपी के शुभारंभ से लेकर अत्यधिक शुल्क वृद्धि तक हर चीज का समर्थन किया है।
उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में, हम महिला सुरक्षा और लैंगिक न्याय के मुद्दों पर एक राष्ट्रीय आंदोलन का उदय देख रहे हैं, कोलकाता की सड़कों से लेकर डीयू के परिसर तक, हम बलात्कार संस्कृति का मुकाबला करने के लिए एक मजबूत ताकत का उदय देख रहे हैं।
देश के सबसे बड़े केंद्रीय विश्वविद्यालय के रूप में, डीयू देश भर से और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से छात्रों को समायोजित करता है। डूसू की राजनीति देश और हमारे समाज की राजनीति को आकार देती है। बीजेपी एबीवीपी के जरिए छात्रों के बीच अपना विभाजनकारी सांप्रदायिक एजेंडा दोहराना चाहती है. अब समय आ गया है कि डीयू की प्रगतिशील ताकतें निजीकरण, सांप्रदायिकता और हिंसा की इस राजनीति को हमारे परिसर और हमारे देश से बाहर फेंक दें, इसलिए आइसा और एसएफआई ने डूसू के मौजूदा मॉडल को ठोस प्रतिक्रिया देने के लिए एक साथ आने का निर्णय लिया है।
डूसू को न केवल डीयू के प्रत्येक छात्र की आकांक्षाओं और समस्याओं का प्रतिनिधित्व करना चाहिए बल्कि आगे बढ़ कर एक उदाहरण बनना चाहिए कि एक प्रगतिशील छात्र आंदोलन क्या कर सकता है, आइसा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष आई एसएफआई सचिव और संयुक्त सचिव के पदों के लिए चुनाव लड़ेगा।
वाम दलों ने कहा कि हमारी मुख्य मांगो में यह शमिल हैं की संस्थान सभी कॉलेजों में आईसीसी और लिंग संवेदनशीलता सेल स्थापित करें, एसईसी और वीएसी पाठ्यक्रम को समाप्त करें। अनिवार्य उपस्थिति और प्रतिबंध नीति को समाप्त किया जाए किराया नियंत्रण अधिनियम लागू किया जाना चाहिए। मेट्रो पास सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
गौरतलब है कि डूसू चुनाव 27 सितंबर को होंगे जबकि वोटों की गिनती 28 सितंबर को होगी। हर साल डूसू के चुनावों में एबीवीपी और एनएसयूआई के बीच कड़ा मुकाबला होता है। जबकि डूसू के इतिहास में वामपंथी छात्र संगठन कभी प्रभावशाली नहीं रहे।