दोस्ती की अध्यक्ष प्रोफेसर नंदिता नारायण ने कहा ने कहा कि भगवा पार्टी कानून द्वारा स्थापित उचित प्रक्रिया पर विचार न करके अल्पसंख्यकों को चुप कराने की कोशिश में संवैधानिक रूप से स्थापित न्यायिक प्रक्रिया का कोई सम्मान नहीं करती है, उच्च न्यायालय से संज्ञान लेने की मांग।
नई दिल्ली(नया भारत 24 ब्यूरो)डेमोक्रेटिक आउटरीच फॉर सेक्युलर ट्रांसफॉर्मेशन ऑफ इंडिया (दोस्ती) ने देश में मुसलमानों के खिलाफ बुलडोजर कार्रवाई की कड़ी निंदा की है और सुप्रीम कोर्ट से इस पर संज्ञान लेने की मांग की है। दोस्ती की अध्यक्ष और डीयू की पूर्व प्रोफेसर नंदिता नारायण ने एक बयान जारी कर कहा कि 21 अगस्त 2024 को महाराष्ट्र के नासिक जिले में लोगों के एक समूह ने इस्लाम के पैगंबर के खिलाफ बयानों के आरोपी पर कार्रवाई की मांग के लिए विरोध प्रदर्शन किया, लेकिन पुलिस द्वारा आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करने में कोई प्रगति न दिखाने पर भीड़ ने मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में कोतवाली पुलिस स्टेशन पर हमला कर दिया।
राज्य के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने तुरंत पुलिस को थाने पर हमला करने वालों से सख्ती से निपटने का निर्देश दिया, कुछ ही घंटों में स्थानीय प्रशासन और पुलिस ने हाजी शहजाद अली के घर को ध्वस्त कर दिया और उन पर हमला करने का आरोप लगाया इसके बाद मुस्लिम पुरुषों की बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां हुईं। पुलिस कार्रवाई के समर्थन में एक भाजपा विधायक ने थाने पर हमले को आतंकवाद के समान बताया और भविष्य में ऐसी और दंडात्मक कार्रवाई का वादा किया।
उन्होंने कहा कि देश में भाजपा शासित राज्यों में अल्पसंख्यकों के घरों को तोड़ने और मुसलमानों के खिलाफ सार्वजनिक क्रूरता की यह हालिया घटना एक बार फिर पुष्टि करती है कि भगवा पार्टी भारत में अल्पसंख्यकों को चुप कराने की कोशिश करते हुए संवैधानिक रूप से स्थापित न्यायिक प्रक्रिया के लिए उसके मन में कोई सम्मान नहीं है , दोस्ती इस मुद्दे को चिंता की दृष्टि से देखती है, अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा, राज्य की मशीनरी का उपयोग करके भाजपा सरकारों द्वारा मुस्लिम घरों पर बुलडोजर चलाना और कथित मुस्लिम अपराधियों की परेड का नजारा हमें अमेरिका में गोरों द्वारा अश्वेतों की सामूहिक हत्याओं की याद दिलाता है ।
प्रोफेसर नंदिता नारायण ने कहा कि दोस्ती की मांग है कि पुलिस स्टेशन पर हमले, हाजी शहजाद अली के घर के विध्वंस और गिरफ्तार मुस्लिम युवाओं की परेड के अपराधियों को न्याय के कटघरे में लाने के लिए कानून द्वारा स्थापित उचित प्रक्रिया का पालन किया जाए। यदि इस देश में कानून का शासन कायम रखना है तो भारत के सर्वोच्च न्यायालय को इस संबंध में स्वयं संज्ञान लेना चाहिए।